javascript
Sign in to follow 's advice will appear in your account when you log in. Follow specific Community Members and never miss out on their views and insights. Build a group of Members who you want to listen to.
Email:       Password:  
Don't have SiliconIndia account? Sign up    Forgot your password? Reset
Close
Ask Dr Bihari Lal Jalandhari for Advice
If your advice request is relevant to other Community members, our Editorial team may choose to send this request to all Experts to attract a wider range of answers and share them with the Community. Rest Assured, we will protect your privacy (unless you recommend otherwise).
Advice Request
Dr Bihari Lal Jalandhari
Dr Bihari Lal Jalandhari

Dr Bihari Lal Jalandhari

Visiting Profesor

Dev Bhumi Ki Pukar

twitter
facebook
Initiative to develop a country
हाँ यदि एक सकारात्मक शोच हो तो निशानदेह देश के विकास की गति को आगे बढने में कोई रोक नहीं सकता ! नौजवानों में अपने देश के प्रति उसके विकास के प्रति जागरूक किया जाना आज के सन्दर्भ में अति आवश्यक है बढ़ते हुए वैशिक प्रतिस्पर्धा के इस युग में प्रत्येक ब्यक्ति उत्तरोत्तर बढ़ने के लिए अग्रसर है यदि इसके साथ नौजवानों के चरित्र निर्माण की पर बल दिया तो निशनदेह एक बदलाव अवश्य आएगा !
Ensuring success
हाँ मुझे विश्वाश है किसी समाज भी समाज की एक अहम् समाश्या के समाधान के लिए लगातार कार्य करने पर सफलता अवश्य मिलेगी ! मेरे द्वारा मध्य हिमालयी क्षेत्र गढ़वाल कुमाऊ की लुप्त होती भाषा के संरक्षण के लिए लगातार पिछले 18 वर्ष के कार्य किया जा रहा है जिसमे अभी तक आंशिक सफलता मिल पाई है मेरा विश्वाश है कि अव
My family background
नाम- डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी, माता पिता-स्व. श्री किसनदत्त स्व. श्रीमती दामोदरी देबी, खेतू, सिन्दुड़ी (बीरोंखाल), पौड़ी गढ़वाल, उख, हिन्दू ब्राह्मण, की दो बेटी दो बेटे हैं ! चार भाई बड़े सुरेश नन्द जलंधरी, दुसरे महेशानंद जलन्धरी , तीसरे सुभाष चंद जलंधरी तथा चार बहिनो में से एक दिवंगत हो गयी है ! पिताजी किसान थे ! उस समय मै पांच वर्ष का था पिताजी को लकवा मार गया था ! डेढ़ वर्ष विस्तार पर रहे ! कमानेवाला कोई नहीं था बड़े भाई फोज में भरती हो कर रंग रूट कर रहे थे ! एक कल्पना करो की इतने बच्चों का पालनपोषण उस माँ ने किस प्रकार किया होगा ! मुझे आज भी वह दिन याद है जब मेरी माँ केवल पानी में अट़ा घोलकर उबलती थी और फिर नमक य दूध के साथ हमें पिलाकर सुलाती थी ! बड़े भाई जी को उस समय 32 रुपया तनखा मिलती थी जो पूरे परिवार के लिए कपडे बनाने के लिए भी प्रयाप्त नहीं थे ! कुछ दिन बाद माँ ने दाई और शुभ कार्यों में मंगल गान का काम सीखा, जिससे घर में आमदनी होने लगी ! जमीन थी बैल थे पर हलजोतने वाला नहीं था ! भाई बड़े होने लगे तो खेतों में हल जोतना आरम्भ कर दिया ! जिससे आर्थिक स्थिति ठीक हो गयी !
Brief description about me
नाम- डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी, माता पिता-स्व. श्री किसनदत्त स्व. श्रीमती दामोदरी देबी, जन्म तिथि 20/11/1961, स्थाई पता- खेतू, सिन्दुड़ी (बीरोंखाल), पौड़ी गढ़वाल, उख, अस्थाई पता-जी-4/87, संत मोहल्ला, तुगलकावाद गांव, नई दिल्ली-44, जाति-हिन्दू ब्राह्मण, सामाजिक कार्य-उत्तराखण्ड के लोगों को भाषाई आधार पर एकीक्रत करने व सौहार्दपूर्ण भावनाओं तथा अपनी मात्रा भाषा व संस्कृति के प्रति रुझान बनाने व उत्तराखण्ड की भाषा गढ़वाली-कुमाँउनी की स्थानीय ध्वनियों की पहचान के साथ दोनों भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन, भाषा परिषद की स्थापना, स्थानीय भाषा में अध्ययन करवाने, विश्वविद्यालयों में भाषापीठ की स्थापना हेतु प्रयासरत ! संस्थागत भागीदारी-अ0भा0उ0महासभा के संस्थापक, उ0 राज्य संघर्ष समिति-सदस्य, उ0 सेवा संघ-संस्थापक, पूर्व अध्यक्ष, उत्तरांचल परिवार-महासचिव, उ0लोक संस्कृति कला मंच-संरक्षक, ग्राम खेतू सुधार समिति-संयोजक, केदारगली क्षेत्र विकास समिति-संरक्षक, दक्षिणी पौड़ी गढ़वाल जि0सं0स0-संस्थापक अध्यक्ष, तुगलकाबाद ग्राम सुधार समिति-पूर्व प्रधान, गढ़वाल हितैषिणी सभा-सदस्य, संस्था हैस्कॅस-सचिव, उ0 भाषा आन्दोलन समिति-सं
My achievements
अपने क्रम्वध कार्य से स्थानीय ध्वनियों की पहचान और उनको गऊ आखर नाम देना उत्तराखंड की भाषा गढ़वाली कुमाउनी के लिए एक सफलता मानता हूँ !इससे उत्तराखण्ड के लोगों को भाषाई आधार पर जोड़ने, अपनी मात्रा भाषा व संस्कृति से सौहार्दपूर्ण भावनाओं के प्रति रुझान बनाने व आधारिक स्तर से इस भाषा में अध्ययन कराने के लिए कार्य कर रहा हूँ ! मुझे अधिक ख़ुशी तब होगी जब गढ़वाली कुमाउनी भाषा के विकाश के लिए भाषा परिषद्, भाषा पीठ और इसे मान्यता प्राप्त होकर विद्यालयों में पढ़ाई जायेगी !
More about myself
क्षेत्रीय भाषा को बचाने विद्यार्थी जीवन से जुटा हूँ पहले समाचार पत्र देवभूमि की पुकार का निकला, दोनों भाषाओँ का तुलनात्मक अध्ययन व ध्वनियों की खोज पर शोध आरम्भ किया ! अब पत्रिका 'भाषा हेतु संकल्प' निकल रही हैं ! मेरी आठ पुस्तकें जिनमे से एक पुस्तक प्रकाशित की है आर्थिक मदद के बिना यह कार्य कर रहा हू
Degree that I recommend
उत्त्तर प्रदेश बोर्ड से कक्षा 10 और 12, दिल्ली विश्वविध्यालय से स्नातक, मीरुत विध्वविध्यालय से स्नातकोत्तर, बरकतुल्लाह विश्वशिध्यालय भोपाल से स्नातकोत्तर, गढ़वाल विष्वविद्यालय द्वारा उत्तराखण्ड की भाषा गढ़वाली-कुमाँउनी की स्थानीय ध्वनियों की खोज व उनका नाम ‘गऊँ आखर’ रखकर उन्हें देवनागरी के साथ जोड़ने के लिए पी.एच.डी. की उपाधि से विभूषित करने के साथ कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जिसमे प्राप्त सम्मान-उ0 की भाषा के लिए ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल मेमोरियल ट्रष्ट स्मृति, हिंलास संस्था पटियाला पंजाब-क्षेत्रीय भाषा के शोध् पर उत्क्रष्ट स0, गढ़वाल सभा पटियाला, पंजाब-ध्वनियों की खोज पर उत्क्रष्ट स0, गढ़वाल हितैषिणी सभा दिल्ली-ध्वनियों की खोज पर उत्क्रष्ट स0, स्मरण हमभूल न जांए उनको, नोएडा उप्र-शोध् पर उत्क्रष्ट स0, उत्तरांचल महासभा- मुम्बई-साहित्य स0, उत्तरांचल विचार मंच-मुम्बई- ध्वनियों की खोज पर स0, अखिल गढ़वाल सभा पंजाब-क्षेत्रीय ध्वनियों की पहचान पर स0, उत्तरांचल महासभा-हरियाणा-गढ़वाली कुमाँउनी पर समान कार्य पर स0, पौड़ी गढ़वाल ग्रुप-दिल्ली-विशिष्ट व्यक्ति स0, देवभूमि उत्तराखण्ड प्रवासी संग
What kind of essential qualities does a person require to became a successful leader?
हाँ यदि एक सकारात्मक शोच हो तो निशानदेह देश के विकास की गति को आगे बढने में कोई रोक नहीं सकता ! नौजवानों में अपने देश के प्रति उसके विकास के प्रति जागरूक किया जाना आज के सन्दर्भ में अति आवश्यक है बढ़ते हुए वैशिक प्रतिस्पर्धा के इस युग में प्रत्येक ब्यक्ति उत्तरोत्तर बढ़ने के लिए अग्रसर है यदि इसके साथ नौजवानों के चरित्र निर्माण की पर बल दिया तो निशनदेह एक बदलाव अवश्य आएगा !
Thoughts on Education system of our country
भारत में अभी शिक्षा के प्रति सरकार संवेदनशील नहीं है ! शिक्षा के प्रति सम्विदना केवल महानगरों नगरों तक ही सीमित हो सकती हैं ! क्यों कि शिक्षा के ब्यवसायिकीकरण से सरमायादार लोगों तक ही उच्च शिक्षा सीमित रह गयी है ! भारत गाओं का देश है जब तक शिक्षा का स्तर गाँव से नहीं सुधार जाता तब तक शिक्षा के क्षेत्र में विकास की बात करना बैमानी होगी ! संविधान में सामान शिक्षा का अधिकार तो है परन्तु वह अधिकार अब सीमित होता जा रहा है ! शिक्षा के नाम पर कई योजनाये आरम्भ की गयी हैं जो केवल माध्यमिक शिक्षा तक आकर ठहर जाती हैं उसके बाद की शिक्षा का स्तर आर्थिक आधार का बनता जा रहा है ! गाँव से ही यदि ब्यवसायिक शिक्षा आरम्भ होती है तो निशनदेह शिक्षा का स्तर स्वयं ही बदलेगा !
Important lesson learned
मैंने जीवन में कई उतार चढ़ाव देखे हैं ! गरीब से गरीब और अमीर के साथ समय विताया है कई राह भी मिली परन्तु हमें अपने रस्ते के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता था बस एक ही धुन सवार रही अपने कर्म क्षेत्र में आगे बढ़ने की ! अपने जीवन का एक कटु अनुभव बार बार याद आता है
पंजाब में पंजाबी और उर्दू सीख रहा था ! मेरे बड़े भाई स्व महेशानंद जलंधरी ने कहा कि दूसरों की भाषा सीखने जितनी उत्सुकता तुममे है यदि अपनी भाषा के लिए कुछ करोगे तो अवश्य एक नयी दिशा की खोज करोगे ! परन्तु यदि तुम्हारा ध्यान भटग गया तो कहीं नहीं टिक पाओगे ! पहले मैंने इस वाक्य को हल्का लिया पर जब एक पंजाबी के साथ बैठकर पंजाबी भाषा सीख रहा था उससे मुझे अपने समाज भाषा संस्कृत एक खिलाफ एक ऐसी बात सुनने को मिली जिसने मुझे अपनी भाषा गढ़वाली कुमाउनी के लिए कार्य करने के लिए मजबूर कर दिया ! आज भी मुझे वही बात उद्द्वेलित करती है !
गीता में कर्म योग का सार "कर्मण्ये बधिकारास्ते माफ़लेसु कदाचना " को आधार मानकर किसी लाभ के विना केवल एक उस समाज के लिए निरंतर काम कर उसे भाषाई आधार पर पहचान दिलाने के लिए प्रयासरत हूँ ! मेरा विश्वाश है कि एक दिन अवश्य
My strongest skill
भविष्य में उभरने वाली सामाजिक परिस्तिथियों को भांप कर उनके समाधान के लिए कार्य को महत्व देता हूँ ताकि वह समश्या उभरे ही नहीं ! यदि एक ब्यक्ति विश्व समाज की केवल एक समाश्या के समाधान के लिए काम करे तो समश्याये उत्पन्न होने से पहले उनका समाधान निकल जा सकता है
शिक्षा के क्षेत्र में ग्रामीण स्तर से ब्यवसयिक शिक्षा को महत्व देता हूँ ! वर्तमान में यदि अध्यापक अपनी नैतिक जिमेदारी मानकर छात्रों को नैतिक जीवन के सम्बन्ध में जागरूक करे तो निशंदेह भारत का भविष्य अधिक ताकतबर और मजबूत होगा ! यह सत्य है कि सभी की आर्थिक स्थिति एक जैसी नहीं हो सकती ! यदि ब्यवसायिक शिक्षा को ग्राम स्तर तक लागू किया जाता है तो भारत देश में उभरता आर्थिक गैप बहुत जल्दी कम हो सकता है नहीं तो भविष्य में एक बहुत बड़ी आर्थिक विषमता उत्पन्न हॉ जायेगी ! फलश्वरूप अमीर अमीरी की ओर, और गरीब गरीबी की ओर बढ़ता चला जायेगा, जिससे भीषण परिस्थिति उत्पन्न हो सकती हैं !
Important decision
हमने अपने लिए जो रास्ता चुना है वह कठिन जरूर है परन्तु जिस प्रकार पिछले अठारह वर्षो से एक एक इंच कर आगे बढ़ रहे हैं मरते दम तक कुछ तो निशान छोड़ जायेंगे ! एक कहावत है "कोई पगचिन्ह बनाते हैं और कोई पगचिन्हों पर चलते हैं" ! उत्तराखंड में अपनी तरह का यह पहला कार्य है इससे पहले यह कार्य नहीं किया गया ! हमारा उद्येश्य उत्तराखंडी भाषा (गढ़वाली कुमाउनी) की नयी दिशा को खोज कर भविष्य में हाथ दे दिया है ! अब इस भविष्य को सवारने की जिम्मेदारी इस परिवेश के भाषा-भाषियों की है कि वे अपनी भाषा संस्कृत को जीवित रखना चाहते है या फिर बिलुप्त होने के लिए छोड़ देते हैं !
आज विश्व की कई भाषाएँ बिलुप्त होने के कागार पर हैं जिनमे ये दो भाषाएँ गढ़वाली कुमाउनी भी है जो केवल कुछ ही क्षेत्र तक सीमित हो गयी है! यदि समय रहते इनके संरक्षण नहीं किया गया तो इन भाषाओँ को केवल रिकार्डिं सामग्री में ही सुन समझ सकते हैं ! इस मुहीम को संगठनों के सहयोग की आवश्यकता है !
Influenced by
मै सबसे अधिक प्रभावित अपने भाई साहब से और उस पंजाबी जाट सिक से हुआ जिनकी बातों ने मेरे पुरे जिहान को झझोड़ कर रख दिया ! केवल अपने समाज के लिए निस्वार्थ रूप से सेवा करने की ठान ली, जिसका पालन आज दिन तक और आगे भी जबतक जीवन रहेगा तबतक करता रहूँगा !
मै अधिक प्रभावित तब हुआ जब मैंने गियर्सन, एटकिंसन तथा डॉ सुनीति कुमार चाटुर्ज्या को पढ़ा ! ये तीनो महा विभूतियाँ उत्तराखंड की धरती से नहीं है फिर भी इनके द्वारा उत्तराखंड की गढ़वाली कुमाउनी के लिए विश्त्रित कार्य किया गया ! इनका अनुसरण कई साहित्यकारों के किया परन्तु किसी का ध्यान गढ़वाली कुमाउनी की ध्वनियों की ओर नहीं गया ! ये तीनो बिभूतियाँ गढ़वाली कुमाउनी को नहीं जानते थे उन्हों ने दूसरों के अधार पर काम किया ! यदि पूरब में ध्वनियों की पहचान हो गयी होती और उत्तराखंड की भाषा को लिखने के लिए एक लिपि बन गयी गोटी तो जिस प्रकार मराठी या नेपाली देवनागरी के माध्यम से लिखी जाती है उसी प्रकार गढ़वाली कुमाउनी भी लिखी जाती ! स्थानीय ध्वनियाँ जिनको वर्तमान में "गऊ आखर" नाम दिया गया है उन्हें उत्तराखंडी भाषा गढ़वाली कुमाउनी के प्राणाक्षर भी कहा जा सकता है !
My role model
मैंने अपनी बात प्रश्न 13 में बता दी है ! रहा मेरे कार्य का सवाल ! वह जब इन भाषाओँ को बोलने समझने वाले लोगों के बीच जायेगा उसके बाद ही हम कुछ अपेक्षा कर सकते हैं ! हमारा उद्येश्य रोल मोडल बनना नहीं है ! ना ही हमें राजनीती करनी है ! हम तो केवल सामाजिक पहचान की बात करते हैं यदि समाज सम्मान देना चाहेगा तो हम ठुकराने वाले कौन हैं ! इस उद्येश्य पर काम करते हुए हमारे उत्तराखंडी समाज की लगभग 20 संस्थाए विभिन्न प्रान्तों में सम्मानित कर चुकी हैं ! परन्तु जब तक उस भाषाई क्षेत्र में शाशित शाशन द्वारा विधिवत रूप से लागु नहीं किया जाता तबतक यह कहना अतिशयोक्ति होगा !
समय आयेगा जब उत्तराखंड के को अपनी भाषा संस्कृति बचाने के लिए सयुक्त रूप से आगे बढ़ेंगे !
Couple of years from now
इस उद्येश्य पूर्ति के लिए उत्तराखंड शराकर पर भाषा परिषद् का गठन करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है ! विश्वविद्यालयों में भाषा पीठ के गठन के लिए प्रस्ताव महामहिम के माध्यम से जमा किया जा चुके हैं ! क्षेत्रीय भाषाओँ को रखने के लिए जितना भी हो सकेगा हम कर रहे हैं ! एक वर्ष के अंतराल में शायद हम अपनी उद्येश्य पर कायम रहॆङ्गे ! इस उद्येश्य पूर्ति के लिए सहयोग हेतु यदि कोई संस्था आगे आती है तो हम समस्त भाषाई क्षेत्र के लोगों का अहोभाग्य समझेंगे ! इस विषय पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर से सहयोग होने पर ही शाशन स्तर से कुछ होगा यह हमारा मानना है !
हमारी आवाज को आगे पहुँचाने पर आप का धन्यबाद !
Most viewed stories - Don't Miss (1-5 of 15)
student
Oboxt Technology solutions
Embedded systems Engineer
Rajasthan Electronics & Instruments Ltd.
SERVICE
kamdhenu ispat ltd.
CEO Temple Of Transgression Ltd
Temple Of Transgression
CIO | UN CHAIRPERSON INDIA
.